Monday, September 11, 2006

1. नानी के कहानी

नानी तू बड़ी दिना से एके तरह के कहानी सुनावइत अयलऽ हे, आज दोसर कहानी सुनावऽ नऽ त़ऽ हमनी सब चललियो । एतना कहके सच्ची के सब लइकन भरभरा के खड़ा हो गेलन । नानी के माथा ठनकल । ओकरा कहानी कहला बिना पेट में अनाजे नऽ पचऽ हल । ई अचक्के लइकन के हड़ताल देखके नानी गिलपिल में पड़ गेल बाकि फिनो ओकरा एगो उपाय सूझल, कहलक कि तनी देर ठहर । हम तुरते आवइत हियो तब नया कहानी कहबो । लइकन बइठ गेलन आउ नानी उठके जीरवा के दोकान पऽ चल गेल । बीस पइसा के दसगो लेमोचूस लेलक आउ सोचइत आ गेल कि आजकल सब काम तऽ घूसे से होवे के ठहरल । लइकन का दोसर हथ । ऊ आन के मचिया पऽ बइठ गेल आउ सब लइकन के एकहगो लेमोचूस दे देलक । लइकन खाके बइठ गेलन आउ नानी कहानी कहे लगल बाकि अब ओहनी कहिनौ बिना लेमोचूस के कहानी सुनबे नऽ करथ । नानी के अब रोज दस-बीसगो पइसा खरचे परे आउ खुसामदो करे परे । ऊ उबिया गेल हल ।
नानी एक रोज दोसर उपाय सोचलक काहे नऽ बुढ़ियन के कहानी सुनाईं कुछ नया बात सुनेला भी मिल जायत ओहनी पुतोह से लड़े से भी बच जयतन । से नानी टोला भर के सब बूढ़ी के जुटौलक आउ अधरतिया तक ओहनी के कथा सुनौलक । दोसर दिन टोला भर के पुतोह जुट के नानी के गोड़ लागलन आउ चढ़ावा भी कुछ चढ़ौलन । सब पुतोहन कहलन "नानी तू अइसही कहानी कहइत रहऽ तऽ हमनी के जान बचल रहे नऽ तऽ हमनी घुल-घुल के मर जायम ।" ई रोजगार में नानी के बेस फैदा बुझायल । से ऊ टोला से आगे बढ़के दोसर टोला के भी बूढ़ी लोग के जुटौलक आउ कहानी कहे लगल । आज सुनताहर के काफी भीड़ हल आउ नानी के जबान पजल कैची नियन दनादन चलइत हल । "सुन गे खदेरन बहु ! बार पके से कोई बुढ़ा नऽ जाय । बूढ़ा हो हे ....।"
बीचे में जीरवा टोक देलक - "का दात टूटे से बुढ़ा जा हे नानी ?" नानी के सब दाँत टूट गेल हल बाकि कपार के केस कुचकुच करिया हल । से नानी बिगड़ गेल - "सुन रे जीरवा । तोरा नियन केतना के हम देखली हे । तू का हें ?" खदेरन बहु चुहल कैलक - "अरे तू नानी के का जानें ? अबहियो ई दू-चारगो के देख सकऽ हथ । दाँत टूटे से का हो हे ? केस तऽ नागिन नियन हइन ।" सुनके नानी के पारा आउ ऊपरे चढ़ गेल - "तू का समझलें हें हमरा । एगो खदेरने के भार से तो मर-मरा गेले । तोरा में का दम हउ ?" तब तक जीरवा फिनो टुभक देलक - "नानी जवानी में तो तू खोज खोज के ... ...।" "हँ-हँ, कह दे भतार करऽ हली । तोरो में हउ हिम्मत ! करबें, एकेगो में दाँत खिसोरा गेलउ । हमरा तीन तीनगो करे परल हल । तइयो देख हमर बार ।" खदेरन बहु फिनो उसका देलक - "ई दतवा कउनो तूड़ देवकवऽ हे नानी कि अपने टूट गेलवऽ हे । बरवा करिये हवऽ ।"
नानी जब ताव में आ जा हल तब अपने कहानी जोर-जोर से कहे लगऽ हल । ओकरा एहू नऽ बुझा हल कि ऊ अपन सिकाइत हे । ओकरो लगे कि एहू एगो कहानिये हे । आज सब बूढ़ियन मिल के ओकरा खिसिया देलन । ऊ सुध-बुध खोके अपन कहानी अपने कहे लगल - "सुन गे खदेरना बहु आउ जीरवा ! हम अइसही कहानी नऽ कही तोहनी के पुतोहियन गोड़ पूजऽ हउ तब कहऽ हिअऽ । सब हम जानऽ ही तोहनी कैगो भतरछोड़नी हें ।" रोझनी पूछलक - "रानी तू कैगो छोड़लऽ हे ? लइकन फइकन एको नऽ हवऽ ।" गरम लोहा भे गेल हल नानी आउ बूढ़ियन हथौड़ी चला रहलन हल, नानी लम्बा होल जाइत हल । बढ़इत-बढ़इत वर्तमान से भूत ला खिंचा गेलन आउ भूते नियन बके लगलन --
"सुन गे रोझनी आउ खदेरन बहु, जीरवा तऽ मरल नियन हउ । ऊ का खाके हमरा बरोबरी करतउ ? तोहनी नियन हम केतना के जनमा-जनमा के गाड़ देलियो ।"
"बिना मरद के जनमावऽ हलहूँ का नानी ?"
एगो जुवान लड़की गते बोलल बाकि नानी सुन लेलक आउ भभक गेल --
"बिना मरद के जनमावऽ हें तोहनी आजकल के छैल छोकरी । हम अपन जवाना में तीन-तीनगो कैली बाकि सब हमरा अकेले छोड़के चल गेलन ।"
"सब छोड़ देलको नानी, एको नऽ रखको ?"
नानी कसके बिगड़ गेल आउ छेकुनी लेके मचिया पऽ से उठ गेल । खरीयत हल कि रोझनी ओकरा गोड़ हाथ पर के बइठवलक नऽ तऽ जुवान छोकरी के जवानी निकाल देहत नानी । जब ओकरा पऽ काली जी सवार हो जा हथ तो मरद के तऽ समझबे नऽ करे, मेहरारू का हे ? नानी मचिया पऽ बइठ गेल । सब बूढ़ी समझौलन तऽ ऊ अपन कहानी कहे लगल बाकि अबहियों हल खीस से मातल । जीरवा कहलक, "नानी पहिलका मरद कहिना कैलऽ हल ? ऊ काहे छोड़ देलको ?"
"ठीक हो जीरवा, अइसही पूछ । बढ़िया से पूछबें तऽ सब कह देबो । खीस बरयबे तऽ एके एक के माथा चूर देबो ।" सब बूढ़ियन हँ हँ नानी के रट लगौलन तऽ नानी तूम्मा नियन फूल के अपन बेयान देवे लगल - "सुन गे जीरवा, हम नान्ह से पतिवर्ता हियो कुंती नियन । दस-बारह बरस के हलियो तऽ घास गढ़े जा हलियो । उहइ दू चारगो घसगढ़वन हमरा पाछे घूरे लगलो । बाकि एगो हमर आँख में गड़ गेलो ।"
"अँखिया दुखैलो नऽ हल नानी ?"
एकरा पऽ नानी बिगड़ल नऽ अबरी हँसे लगल । ओकर पोपल मुँह से दाँत के बदले जीभ निकल आयल जेकरा से ऊ सूखल ओठ के भींजौलक आउ फिनो कहे लगल --
"ऊ घसगढ़वा कच्चा महतो हलो । दू बरस के बाद हमर अमल रह गेलो । हम बिगड़ली तऽ ऊ महतो हमरा ही रोज कुछ न कुछ पहुँचावे लगलो । गरीबी का न करा दे हे ? से हमर गरीब माय-बाप भी खुस, बाकि जब हमर पेट उभरल तो ओहनी के हवासे गुम हो गेल । हम कहली कि माय एकरा में घबराय के का बात हे ? हमर हाथ ओकरे से धरा दे ।"
जीरवा पूछलक - "हथवा धरावे से पेटवा पचक गेलवऽ नानी ?"
ई मजाक सुनके नानी बिगड़ गेल - "चमइन भिरु कोख छिपावऽ हें ? केकरो हाथ धर लेला पर पेट पचकावे के जरुरत पड़ऽ हे ? सौ-सौगो चूहा खाके पचौले होयबें ।" नानी के तरवा के लहर कपार पर चढ़ल जाइत हल । से ऊ परतूक देलक --
"महाभारत के नाम सुनले हें ?"
रोझनी - "कइसन हो हे नानी ?"
"नानी भिरु बइठ के तू महाभारत भी न जाने ? अभी तोहनी हमरा न पकड़ते हल तो एहिजे महाभारत मच जयतो हल । ऊ जवनकी के मार छेकुनी के छरपट छोड़ा देतियो हल ।" डरे सब बुढ़ियन हँऽ में हँऽ मिलावे लगलन ।
"ठीके कहलऽ नानी, अगाड़ी कहऽ, फिनो का भेलो ?"
"का भेल का ? ओकरा से दूगो भेल आउ दूनो के जनमते नाला में गाड़ देवे परल । आउ फिनो महतो भी हमरा छोड़के चल गेलन ।"
जीरवा पूछलक - "मरले होलो हल नानी ? आउ महतो कहाँ चल गेलथुन ?"
"न गे जीरवा, जनमते ओहनी के जम्हुआ जाँत दे हलो आउ का कहिओ दुख के बात, महतो के टीभी हो गेलो आउ .... ...।" कहते-कहते नानी के आँख से झर-झर लोर चले लगल आउ ऊ अनचके में गूंग बन गेल । नानी जब गूंग बन जा हल तो बिना खीस बरले ओकरा बकारे न निकले ।
से जवनकी फिनो टुभकल - "नानी तू तो महाभारत पढ़ले हऽ ?"
महाभारत के नाम सुनके नानी के ताव आ जा हल - "अरे हम का पढ़बई, पढ़बें तोहनी कौलेजिया छोकड़ी । चुपे-चुपे सब काम करबें आउ कहे के हिम्मत तो हउ नऽ ।"
जीरवा बीच बिचाव कैलक - "छोड़ऽ नानी ई सब बात, अपन जबाना के बात कहऽ ।"
"सुनबें हमर जबाना के बात । कुन्ती चुप्पे तीन-तीन गो जनमौलन हल । हम तीन गो परतछे कैली हल ।"
"एके तुरी कैलहूँ हल नानी ?"
"अरे अकिल होउ तब न समझे के ? हम का दरोपदी नियन पतिवर्ता हली कि एके दफे पाँच-पाँच गो के रखती हले ? हम तो एगो जुवान मेहरारू हली जइसन ऊ कौलेजिया ओली हे । ऊ घड़ी से ऊ जवनकी कौलेजिया के बोली बंद हो गेल आउ नानी के रेकार्ड चढ़ गेल । "सुनबे तऽ सुन । ओकरा बाद हमर बिआह एगो खूसट बूढ़ा से हो गेलो । खाय के ठेकान तऽ हल नऽ , बाप तिलक कहाँ से देतन हल ? से बूढ़वा से ऊ सस्ती में पूरे डेढ़ सौ लेके हमरा ओकरा ही अरियात देलन जहाँ जयते मातर हम ऊ बूढ़वा के कब्जा में कर लेलियो । ताला कुंजी ले लेलियो । ऊ अब हमर इसारा पऽ नाँचे लगलो । सुन गे जीरवा, जइसे दरोपदी के खुलल बार देखके अर्जुन नाँचऽ हलन आउ भीम टंडइली करऽ हलन ।" सुनके कौलेजिया फिन बोलल - "लगऽ हे कि नानी सउँसे महाभारत कंठस्थ कैले हथ ।" अबर नानी के ताव आउ आ गेल, बोलल - "महाभारते नऽ, रमायन भी कंठस्थ हउ, सुनबें ? कहिअउ ? सब अउरत सोचलन कि अबरी केकर बारी आ जायत आउ केकर बखिया उधरे लगत, से डरे सब एके दफे बोललन - "नऽ नानी, हमनी का खाके सुनब, बुझायत कुछ । अपने कहानी कहऽ ।"
नानी फिनो कहे लगल - "बुढ़वा सबेरे के दीया हल, बिना हवे के बुताये लगल बाकि हमर पेट में एगो दोसर दीया जरा देलक । खेत-बारी अन-धन हइये हलई । से हमहू संतोख रखे लगली । फिन दस महीना के बाद भेलो ।"
सबे एके दफे बोललन - "दस महीना के बाद ?"
तोहनी का जाने ? पहिले एगारह-बारह महीना पऽ लइका हो हल । अब नऽ नौवे महीना पऽ हो जा हे, केकरो सात-आठ महीना पर । महादे जी के कथा सुनले हें ? कातिक जी केतना दिन पऽ होलन हल ? बरह्मचारी हनुमान जी के सुनले होयबें । उनको लइका हलइन, तुलसी दास के नाम सुनलें होयबें - केतना दिना पर जनमलन हले ? नानी अपन विषय से अलगे हो रहल हल आउ डर हल कि फिनो केकरो पऽ चू जायत । से सब घिघिआय लगलन ।
"नानी तू तो बहादूर हऽ घोड़ी नियन, जे अठारह महीना पऽ बिआ हे ।" नानी खुस हो गेल - "हँऽ, अब तोहनी समझलें हें । तब ऊ बूढ़ा के लइका हमर पेट में पूरे दस महीना रहके बारह भेल आउ चान नियन बढ़े लगल । खाय-पीये के कोई हरजा हइये न हल । एगो टोला के बुढ़िया खेलौनिया ठीक कर (ले)लियो । ओही छौड़ा के खेलावे आउ खिआवे पीआवे । हमरा तऽ खेती बारी से फुर्सते नऽ मिले ।"
"तऽ का तू सब दिन टउआइत ही रह गेलऽ नानी ? कइसे रहा हलो ? तू तो ऊ घड़ी जुआन होयबऽ ?"
"तोहनी हमरो से जादे भुलक्कड़ हे । पहिलही न कहलियो हल कि हम तीन-तीन गो कैली हले ।"
"तऽ अपन तेसर मरदनवाँ के पूरा खिस्सा कहबे न कैलऽ नानी ?"
नानी तनी बिगड़ल - "सब एके तुरी सुन लेबें । हम एक-एक करके कहबऊ आउ कभी एकर खिस्सा ओकर में घुस जयतो आउ ओकर खिस्सा तोहनी पर चू जयतो । चुपचाप सब सुनेला हउ तो सुन, न तो ई छेकुनी देख ।"
नानी के छेकुनी देख के सब सटक सीताराम, तब नानीये ओहनी के हिम्मत बढ़ौलक - "खिस्सा सुनेला हउ तो तोहनी सब तनी भिरु आ जो आउ मन लगा के सुन । ढेर दिना से मरद मेहरारू पऽ सासन कैलन हे, अब तोहनी के भी मरद पऽ सासन करे के चाहउ तब ओहनी के दिमग ठंढा जयतो ।"
"कइसे नानी, ओहनी तऽ हमनी के मारके भुरकुनी कर देत ।"
नानी बिना दाँत के मुँह से गरजल - "तोहनीओं तइयार रह । एक दफे हमरो पऽ ऊ हाथ उठौलक हल । हमहूँ धीपल छोलनी चला देली, तनी सुन से नाक बच गेलई नऽ तऽ छप से उड़ जतई हल। तहिना से ऊ सुधरिये गेल । जब तक हम सुतल रहीं तब तक ऊ उठके घर आगन बहार देवे आउ बरतन लेके मइसे ला बइठ जाय । हम जब उठके आईं तऽ अगना में बरतन खटखटाइत देख के कहीं - "ई का करइत हऽ रजुआ के बाप आउ बहर भूईला चल जाई । घंटा भर के बाद लौटी तऽ आग सुलग के तइयार रहे ।"
"पोसुईं कुत्ता का हलो नानी ?" जवनकी गते टुभकल ।
नानी बिगड़ गेल - "तोहनी पोसुवाँ बाघ रख जे दोसर भिरु बिलाई रहतउ आउ घर में तोहनीये के खा जतउ ।"
"ओकरा बोले देहू, नानी ।" खदेरन बहु ललकरलक ।
नानी घोड़ी नियन जमे लगल - "एक रोज हम बजार चल गेली हल । लौटे में तनी देरी भे गेल । देखली कि अभी आग नऽ जुटल हे । ऊ अगना में बइठ के तोरे नियन एगो कुटनी बुढ़िया से बात करइत हल । हमरा अगना में देखते ऊ पीछे के दूरा खोल के भागल से तीन दिन के बाद घूरल । बेचारी बीच में पड़ गेल ऊ कुटनी बुढ़िया । ओकर गरदसा उतर गेलई । झखुरा धर के ओहिजे ओकर मांग में खरी रगड़ देली ।"
"फिनो का भेलो नानी, मरदा के अयला पऽ रख लेल हूँ ? मेहरारू भाग जा हे तऽ मरद ओकरा रखबें न करे आउ रखऽ हे तऽ तुलसी गंगाजल पियाके ।"
"सुन गे जीरवा, बीच में हमर बात मत काट । पहिले सब सुन ले तऽ कुछ कहिहें । जब ऊ तीन दिन पऽ लौट के आयल तऽ हम पहिले ओकरा से करार करौली कि अब से बिन पूछले घरे से बाहर लात नऽ रखिहऽ । ऊ गिरगिट नियन मुड़ी हिला के सब बात मान लेलक । ऊ दिना से नानी मुये कि बिन पूछले कहऊ जाये आउ कउनो मेहरारू से बोले के हिम्मत करे ।"
"नानी तू तीन-तीन गो कैलऽ आउ ओकरा केकरो वे बोलहूँ से रोकऽ हलहूँ ?"
"सुन रे कौलेजिया छोकरी, तू अभी पढ़ल कर, सब बात आजे नऽ समझ जयबे ? ढेर दिन तक ओहनी हमनी पऽ राज कैलन आउ सक भी कैलन हे । अब तऽ हमनी के कहल करही पड़तइन । ओहनी एगो का साठ गो आउ हजार गो करतन, हमरा तीने गो कैला पऽ तू घबराइत हें । अउरत जात नऽ हे ? बुधी तऽ मेहरारुये ओला हउ । अकिल कहाँ से होतउ ? का तऽ पढ़ल हें ?" जवनकी डाँट खाके चुप हो गेल आउ बुढ़ियन कहलन - "तू कहऽ नानी, ई अभी जुवान हे । बुढ़ारी में पता चलतई ।"
नानी फिनो सुरुम कैलक - "ऊ हमर कान पातर मरदाना हलो । सेनुर-टिकुली करके कउनो बूढ़ा से भी बोलो तऽ ओकर कान खड़ा हो जाय आउ हमरा पीछे खोपियागिरी करे लगे । एक दिन फिनो ऊ कुटनी बुढ़िया साथे बतियाइत पकड़ा गेल । ऊ दिन हमर तरवा के लहर कपार पऽ चढ़ गेल । हाथ पकड़ के घरे से बहरा देलिअई कि आज से ई दूरा पऽ चढ़े के जरुरत न हो । अब हमहूँ मन से बुढ़ाय लगलियो हल ।
सब कहे लगलन - "अब कल्ह कहिहऽ नानी, ढेर रात बीत गेलो । हमनी के पुतहियन असरा में होयतन ।" नानी के मन अभी आउ कहे के करइत हल । से बोलल - "भतार बिना मन न लगइत हउ कि एतना अकुतायल हें सब ?" नानी के ई मजाक सुन के भी सब बुढ़ियन उठलन आउ भरभरायल उहाँ से जल्दी-जल्दी घरे दने जाय लगलन ।
नानी उदास हो गेल । लगल कि ओकर मरलकन लइकन आन के ओकरा चारु बगल घेर लेलन हे । नानी ओहनी के लेमोचूस बाँट रहल हे ।

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