Monday, September 11, 2006

2. नानी के सपना

सब बूढ़ मेहरारुन घरे चल गेलन आउ नानी सपना में मरलकन लइकन के लेमोचूस बाँटे लगल । रात साँय-साँय करइत हल बाकि गरमी के रात में एगो-दूगो लोग खटिया पर सुतल करवट बदलइत हलन । अठमी के चान डूब गेल हल । नानी मचिये पऽ बइठल-बइठल झुके लगल हल आउ झुँकते-झुँकते लेमोचूस बाँट रहल हे । सबसे पहिले महतो ओला लइका आयल आउ पूछलक - "माय, आज तू हमरा लेमोचूस देइत हें आउ ऊ दिना तू उठाके नाला में गाड़ देले हल । ऊ दिन लेमोचूस न हलो ।"
नानी का जवाब देइत । ओकरा तऽ नीने में कठमुरकी मार देलक । टुकुर-टुकुर ओकरा देखइत रह गेल । ऊ लइका रुस गेल । नानी लेमोचूस देइत हे आउ ऊ ले नऽ रहल हे । ऊ भागे लगल आउ नानी हाथ में लेमोचूस लेले ओकरा पीछे दौड़े लगल । नानी केतनो जोर लगौलक बाकि ऊ नऽ पकड़ायल । भाग के नाला में कूद गेल । नानी भी ओकरे साथ कूदल तऽ मचिया पऽ से नीचे लोघड़ गेल । ऊ सम्हर के फिनो बइठ गेल आउ अपन सपना पऽ विचार करे लगल -- तब हम तेरहे-चउदह बछर के हली । कच्चे में पेट रह गेल हल । ऊ घड़ी सउसे गाँव में कोहराम मच गेल हल । लगऽ हल कि गाँव पऽ अकास फाट के गिर जायत बाकि महतो एने परतछे हमर हाथ पकड़लन आउ ओने हल्ला सांत भे गेल ।
नानी के आँख लगते हल कि महतो फिन अँचरा खींचलक तऽ हमरा खीस बर गेल आउ गढ़े ओला खुरपा निकाल के चला देली । ओकर एगो अंगुरी कटा गेल । लेहू हमर मांग पर चूआ देलक आउ कहलक - "देख जानी, ई सेनुरदान हो गेलो । अब तू हमर हो गेलें । बोल, दोसर बिआह तो न-न करबें ?" लेहू के टपकइत बून देख के हमरा मोह लगल आउ कह देली - "हँ, न करबो, बाकि हमरा रखबें कहाँ ? ई गाँव में तऽ बड़कन महतो लोग तोरा कच्चे चिबा जथुन । आज जे हमर माय तोरा पर कुछो नऽ बोलो, ओहू काली बन जयतो । तब तू का करबें ?"
ऊ बोलल - "हमनी सहर-सहरात का नऽ चल सकऽ हें ? केतना के उहाँ परवरिस हो जा हे । हमनी दू परानी के का गुजर न होयत ?"
नानी मन में सोचलक कि सब मरद अइसने कहऽ हे आउ करे के बेरा चूरी पेन्ह ले हे बाकि ऊ बड़ा बहादूर निकलल -- सबके सामने ही ऊ हमर हाथ पकड़ के अपना ही लिया गेल । हमहूँ ओकरा ही ठाठ से रहे लगली ।
नानी मचिया के बगल में चटाई पऽ सुतल फोफिआइत हल । ओकर नरेटी के घर्र-घर्र से टोला-परोसा के नीन टूट जा हल बाकि नानी जब सुत जाय तऽ बिना किरिंग फूटले उठबे नऽ करे । आज कइसे तऽ हाली-हाली ओकर नीने उचट जाइत हल आउ हाली-हाली सुते के कोरसिस करइत हल । जब तनी आँख मड़राय तब ओकर लइकन आन के ओकरा घेर लेथ । लगल कि ऊ खेलौनियाँ बुढ़िया एक रोज हमर तीन महीना के दूधमुँह लइका के खेलावेला गाँव के बहरी भूतहा बर तर ले गेल तब से पते न चलल कि ओकर बेटा के का हो गेल, कहाँ चल गेल । ढेर साल के बाद पता चलल हल कि ऊ बुढ़िया बाँझ पड़िआइन से ५० पच्चास रुपेया लेके ओकरा दे देलक हल ।
ओही लइका आज बाबाजी बनके पोथी-पतरा पूजावइत हे । आज ऊ भला मानत कि हमर बेटा हे ? सूच्चा पाड़े बनके अकड़ल चलऽ हे । जरा देखऽ नऽ, ओहू लइका नियन लेमोचूस ला आन के अगोरले हे । रात के अन्हारा में माय-माय कहइत हे आउ बिहने भेल । कहत कि गोड़ो नऽ लगलक बुढ़िया । भला सोच जीरवा, हम बेटवे के गोड़ लागीं ? अच्छा लेले एगो लेमोचूस आउ कल से मत अइहें । तू ही तो एगो बचलें हें । बढ़िया से खो-कमो, तोरे देखके तो संतोख हे । बाकि तूहूँ आजे के मरदाना नियन कहऽ हें कुछ आउ, करऽ हें कुछ आउ ।
ऊ बोलल - "का करबे माय, जे हमरा पोसलक हे ओकर गुन तो लेबही परऽ हे । ओकर बाप-दादा अइसने करइत अलथिन हे । तोरे नियन कमाय ओला तऽ न-न हलथिन ।"
नानी बोलल -"जादे नेत मत बघार हमरा भिरु । लेमोचूस ले ले आउ भाग । पोथी-पतरा पूजाव ।" फिनो अनचके नानी के नीन टूट गेल आउ सपना बिला गेल । ओने कउवा टराय लगल हल । गली के इनरा पर बलटी-डोरी के खट्-खट् सुनाय लगल हल । नानी के पेट ममोरे लगल ।

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