Monday, September 25, 2006

4. भिखना के चाचा उर्फ नारद

भिखना के चाचा के रोज के इहे हाल हल कि ऊ जीरवा के दोकान पऽ कनहूँ से एक बंडील दतवन लान के सबेरही रख दे हलन आउ अपने मुँह में एगो दतवन लगौले गाँव में एक चक्कर लगा दे हलन । जउन गली में ऊ जाथ, लोग फुसके लगथ - "आज सबेरे नरदवा पर नजर परलो हे, नऽ जानी दिन कइसे कटत" आउ ऊ जीरवा के दोकान से चलके सीधे चमटोली पहुँचलन आउ रोझन रविदास के दुरा पर खड़ा हो गेलन । ओने से रोझन के बेटी रमुनी निकलल आउ पाँव लागी चाचा कहके गगरा लेले गली में निकल गेल । ऊ पूछते रह गेलन कि रोझनी घरे हउ ? तइयो ऊ बिन जबाबे देले पनघट पऽ पहुँच गेल । नारद दतवन चिवावइत आगे बढ़लन तऽ एगो आदमी भइस पऽ चढ़ल चरावेला ओकरा लेले जाइत हल । देखके नारद के नऽ रहायल, बोललन - "आज सबेरे सबेरे भइसासुर के दरसन भे गेल । घरे खायला नऽ मिललऽ रे गबूदना तऽ तोरे ही आनके डेरा डाल देबउ ।" गबूदना 'जा जा' कहइत भइस के हँकौले अगाड़ी बढ़ गेल । आज नारद के कहई लहइत नऽ हल । से ऊ खिसियायल, दतवन के जोर-जोर से दाँत में रगड़इत गली में चलल जाइत हलन । हाथ दतवन पऽ हल आउ मन जीरवा पऽ हल आउ आँख खदेरन बहु पऽ हल । से उनकर एगो गोड़ ईंटा पऽ पर गेल आउ ईंटवा उलट गेल । से ऊ ओहिजे थसकुरिये गिर गेलन आउ उनकर धोती गोबर में लेसरा गेल । देखके खदेरन बहु हँस देलक तऽ नारद बिगड़ गेलन, खीस तऽ उनका पहिल ही से बरल हल । से उनकर मुँह से कुछ खराब निकल गेल । सुनके खदेरन बहु काली के रूप धर लेलक आउ हाथ मेंकर तमाकू ओकर मुँह पऽ फचाक् दे मार देलक । तमाकू नारद के आँख पऽ पर गेल आउ कुटकुटाय लगल । ऊ दतवन छोड़के आँख मले लगलन । एने खदेरन बहु चिचिआइत हल - "सब के जीरवे समझ लेले हें, अबरी कुछो बोललें तऽ मुँह में आग लगा देबउ मुझौंसा, तू रड़ुवा हें आउ ऊ राँड़ हउ । कर ना काहे लेइत हें चुपे-चुपे गूर-चुरा ऊरुरे एकारसी कलमुँहा, जीभिया खींच लिअउ ?" गुदाल सुनके पनघट पऽ के मेरारुन उहाँ जमा हो गेलन । अवते मातर रमुनी बोलल - "ठीक कैलें चाची, अगवने हमरो मइया के बारे में पूछऽ हले ?" खदेरन बहु - "राम-राम, ओहसन सतवंती के भी ई बात चलावऽ हे मुँहजरा । मुँहवाँ पऽ थूक नऽ देलें ? हमनी सब थूक तऽ एकर मुँह पर ।" आउ सचमुच में दू चार गो बूढ़ी मेहरारुन नारद दने मुँह करके पच् पच् थूक देलन ।

******** Incomplete ********

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