Monday, September 25, 2006

5. नानी के दरद कथा

नानी के रात में गाँव रत-रत भर जागल रहऽ हे । गरमी से जादे मच्छड़ के मारे लोग के नीन नऽ परे । आउ खटिया पऽ परल लोग थपड़ी से चटचट मच्छड़ मारइत रहऽ हथ । रमधार मिसिर अपने ठकुरबारी के सामने पानी छिटके खटोला बिछा देलन हल आउ ओकरे पऽ परल-परल मच्छड़ मारइत हलन । ओने से दन दनायल खदेरन बहु चलल जाइत हले । लगल कि हहासल हावा के एगो झोंका आयल आउ फिनो सांत हो गेल । खदेरन बहु दउड़ल नानी के चौपाल में पहुँचल । उहाँ अभी सन्नाटा छवले हल । दलान में ढिबरियो नऽ बरल हल । नानी पेटकुनिये अंगना में परल हल । आनके पूछलक - "का बात हो नानी, अभी खाय उई ला नऽ बनौलऽ हे ? काहे तऽ मरल नियन परल हऽ ?"

******** Incomplete ********

No comments: