Monday, September 25, 2006

13. खदेरन के जालसाजी आउ भूत के अंत

खदेरन के लगल कि जउन जाल ऊ फेंकलक ओकरा में मछरी का कि घोंघो सेवार नऽ बझल आउ अपनही ओकरा में लपटा गेल । अब ऊ अपन देह में लपटायल जाल के अपने हाथे कइसे निकालो । हाथो तऽ ओकर लपटायले हे । बरमा जी बेटी के बिआह ला फिफिहिया हथ । मिसिर जी जजमनिका छूट जाय के डर से भिरु ठेकिए नऽ रहलन हे । भिखना के चाचा पऽ तनी भरोसा हले काहे से कि ऊ ओकर जात-भाई के हलन आउ ओकर गुन के बरोबर बढ़ाई करऽ हलन बाकि ओहू जीरवा के डरे अलगही सिकुड़ल रह गेलन काहे से कि जीरवा के दोकान गाँव घर से लड़के तो नऽ चलइत हल । जब मेल रहत तबहिये गहँकी अवतन आउ अब तऽ गाँव में एगो दोसरो दोकान खुल गेल हे । ओही कंटोल के दोकान जहाँ पर के समान पर दाम लिखल रहऽ हे । से जीरवा के लेहाजे भिखना के चाचा भी खदेरन के जाल से छोड़ावे भिरु नऽ गेलन ।

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