Monday, September 25, 2006

15. गाँव में तीन खुसी

"सुन खदेरन, अब लड़के ओहनी से फरह नऽ पयबें तऽ मिलके कुछ कर सकऽ हें । बुद्धिमान लोग लड़के नऽ जीतऽ हथ तऽ पेट में घुमके ओकर पेट फार दे हथ । एकरा में तनी अपमान भी होवे तऽ सह लेवे के चाहीं" - मिसिर जी बोललन । खदेरन कहलक - "अब हम कुछ नऽ करबो मिसिर जी । असली नारद तऽ तू ही बुझाइत हऽ ।"
"अइसे काहे कहऽ हें खदेरन । हम कउन काम में तोर साथ नऽ देलिअउ ?"

******** Incomplete ********

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