खदेरन के बेमारी बढ़ते जाइत हल । जीरवा के दोकान के फक्की आउ बरिया से कुछो नऽ फैदा लोक रहल हल । खदेरन जादू-टोना करऽ हलन बाकि उनका विसवास नऽ हल । तइयो खदेरनी दोसर गाँव से ओझा बोलाके झार-फूँक करावेला तइयार भेल । ऊ ओझा आनके सब बात के जानकारी हासिल कैलक तब ओकरा विसवास हो गेलई कि बसवाड़ी आउ पीपर तर के भूत के बसेरा खदेरने के चलते उजरल हे । ऊ भूत अब जाओ तऽ कहाँ ? से ओहनी खदेरने के पकड़लक । हाली छोड़िये नऽ रहल हे । सुनके खदेरन बहु बड़ा सोंच में पड़ गेल आउ ओझा से पूछलक - "दोहाई महराज के, ऊ भूतन इनकर देह छोड़तन कि नऽ ?"
******** Incomplete ********
Monday, September 25, 2006
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