Monday, September 25, 2006

21. गाँव दोगल हो गेल

जीरवा दिने खानी दोकान पऽ बइठल झुक रहल हल । पहिले आसा में रहऽ हल कि भिखना के चचा अवतन तऽ तनी खैनी मल के देतन । ओकरा तऽ देह ककुलावे के छुट्टी नऽ मिलऽ हल बाकि अब तऽ ओकरा छुट्टीये-छुट्टी रहऽ हे । दिन भर में दू-गो चार-गो गहँकी आ जा हथ ओही काफी हे । से अकेले दोकान पर बइठल जीरवा टूटल पत्ता में से खैनी तोड़लक आउ कमर के लुग्गा में खोंसले चुनौटी में से पीयर चूना निकालके तरहथी पऽ मले लगल । मलते-मलते कभी झुक जाय तऽ ओकर कपार टीन से टकरा जाय । एकाध-गो चुटरी निकलके पीछे से ओकर देहो पऽ चढ़ जाय आउ चुटी नियन सुर सुराय लगे तऽ जीरवा अचकचाके देह डोला देवे तब हाथ मेंकर खैनी फेंका जाय । रह-रहके ओकरा दस बरस पहिले के बात इयाद आवे । कइसन जबाना हल ऊ । दोकान पऽ चूटी नियन भीर लगल रहऽ हल । एगो उठऽ नऽ हल कि दोसरका बइठ जा हल । अन्हारे से साँझ तक गहँकी चलावइत-चलावइत हाथ-कपार पिराय लगऽ हल । भिखना के कसबा से माले लावे में दम छूटल रहऽ हलई । अब अराम करो । माले नऽ बिकई तऽ लावत काहे ला ? सोचइत-सोचइत जीरवा झुकके दोकाने पऽ लोघड़ गेल आउ फोफियाय लगल । ओने से खदेरन बहु आनके जीरवा के कान में तनीसुन पानी टपका देलक तऽ ऊ फुर-फुराके उठ बइठल आउ चुटरी के मारे ला निनुअयले में छेकुनी खोजे लगल सामने में खदेरन बहु के देखके लजा गेल आउ पूछलक - "का चाहो खदेरन बहु ? ढेर दिन पऽ लोकलऽ हे ।"

******** Incomplete ********

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