Monday, September 25, 2006

23. नानी टोला के मीटिंग ठकुरबारी पर

"सुनऽ तनी रमुनी के माय, आज काहे तऽ नीन नऽ आवइत हो । अब अधरतिया होवे आयल बाकि पपनी नऽ झपकल हे ।" रोझन के बात सुनके रोझनी चकचेहायल उठल - "का बात हो, कुछो सोचइत का हऽ ?" "आजकल गाँव के कउन अदमी नऽ सोच में डूबल हे । सुरुज महतो जब से बेमार पर गेलन हे, लगइत हे कि गाँव के कोई मातवरे नऽ हे । एने रघुआ फतुही उड़वले चलइत हे । मिसिर जी भी बदल गेलन हे । दिन भर माँगऽ हथ आउ रात खानी नानी टोला में पहुँच के ओहनी के पीठ ठोकऽ हथ । बरमा जी के ओही हाल हे ।" "तऽ तू का करबहू रमुनी के बाबू ? तोरा का बवसाव हवऽ ? एक दिन जूता नऽ बनावऽ तऽ खायला नऽ जुटवऽ । हमरो तऽ अब आँख से नऽ लोके । नानी भिरु भी जनई छूट गेल ।"

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