Monday, September 25, 2006

24. धरती माय के असीर्वाद

नानी टोला पऽ अन्हार ही भेला बुधुआ गरज-गरजके चिचिआइत हल - "तोहनी के कुछो फिकिर हो । नानी के जगह-जमीन में बसल हें आउ नानी बेमार हे, तनी देखहूँ गेले हें कोई ? रग्घू भाई सब के मतिसार देकथुन हे ? आउ ओहू तऽ अपन दिमाग से कुछो काम नऽ करथुन । बरमा-मिसिर जे कहऽ हथिन ओही भजऽ हथुन । हमनीयो के तऽ आँख-कान हे । देख-सुनके करे-चले के चाहीं ।" पनघट पऽ से चिचिआइत ऊ दूसर गली में घूर गेल । सब लोग ओकर बात कान-पट लगाके सुन रहलन हल । जब बुधुआ अन्ह हो गेल तब पनघट पऽ फुसफुसाहट फिनो सुरुम भेल । एगो बूढ़ी बोलल - "लगऽ हे कि अब नानी मर जयतन । उनका गेला के बाद सउँसे गाँव निसु हो जायत । कउनो तऽ ओतना उमिर के नऽ बचइत हथ ।"

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