"एसो एतना ठंढा पर रहल हे कि लोग दिन भर देह पर कम्बल इया चदर लपेटले रहइत हे । अइसन मलमली आउ कनकन सोरा हावा हमरा इयाद से न बहल हल । लगऽ हे कपड़ा चिरके बरफ नियन हावा हिरदा में समा जा हे आउ दलदली पैदा कर दे हे ।" रमधार मिसिर के ठकुरबाड़ी के अगाड़ी जुटल अलाव में पोरा डालइत सूरुज महतो कहँरइत बोललन । धुआँइत आग तनी भुक से लहरल आउ फिनो बुता गेल । फटल फराँटी नियन मुँह से हावा निकालइत खदेरन कहलन - "सूरुज भाई, अब बउसाव थक गेलो, मजगर फूँक भी न होआव । थकल देह के माटी उठिये जाय तो ठीक हे । आउ अब तो नानी टोला के लोग के काम-धाम देखके जीव घबराइत रहऽ हे कि भगवान कउन दिन देखेला हमनी के जीअवले हथ । अब तो टुकुर-टुकुर देखे के अलावा कुछ रहल नऽ ।" "सीरी राम जय राम जय जय राम ।"
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Monday, September 25, 2006
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