Monday, September 25, 2006

30. गाँव नहर पर

जीरवा के दोकान उठ गेल । एक समय ओकर दोकान सौदा के अजायब घर हल । नून-तेल-धनिया के साथे साग-सब्जी तो बिकवे करऽ हल, बिसकूट-लेमोचूस के साथे खूभिया आउ पेड़ा भी उहईं मिल जा हल । खदेरन बहू के तमाकू आउ डोमन चा के अफीम आउ सुसमा के फोंकना के साथे जीरवा नीम के दतुअन भी रखऽ हल । दोकान चलावे में ओकर परान चरगन भेल रहऽ हल । कुछ दिन दोकान पर झुँकइत जबाना के कोसइत रहल आउ नानी के खिस्सा कहे के लत अपनौलक बाकि नानी नियन अदमी न जुटा पौलक । से ओकर दोकान एक रोज उठ गेल । बचल-खुचल सौदा घरे लान के खा पका गेल । कुछ दिन भिखना फेरी देवे के काम कैलक ओकरो से ओकर पेट चंडाल न भरल तो ऊ लदनी सुरुम कैलक बाकि देहात के कच्ची सड़क पर भी अब बैलगाड़ी के साथे टैक्टर चले लगल तो ओकर लदनी भी बन्द हो गेल ।

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