Monday, September 25, 2006

31. नानी के गाँव आउ रिंग रिंग के खेल ?

"आठ आना, आठाना, आठना, आठना, आठ आने टिकस । जीरवा के पुराना सवदगर फक्की के साथे रिंग के खेल । कलकत्ता के रिंग-रिंग अब अपन गाँव में - नानी के गाँव में - आठ आना, आठाना, आठना, आठ आना, आठ आने टिकस" , बुधुआ जोर-जोर से जीरवा के पुरनका दोकान पर चिचिआइत हल । दोकान के दूरा पर एगो लाल परदा लगा देल गेल हल जेकरा पर उड़ल जाइत कउवा के फोटो हल आउ एगो नाँचइत मोर भी अपन पाँख फैलैले हल । गली में लइकन के भीड़ जमा हल । दू-चारगो सेयान भी जौर हो गेलन हल बाकि जेकरा पास आठ आना पइसा रहे ओही न परदा के भीतरे जाव । से लइकन आठ आना पइसा ला माय भिजुन जाके रोवे लगलन बाकि दूगो सेयान अठ-अठ आना के टिकस खरीद के परदा के भीतरे घुसलन तो भिखना पहिले ओहनी के दू पुड़िया चटपटी पाचक दे देलक आउ बोलल - "आम के आम आउ गुठली के दाम । आठ आना के टिकस तो तोर वसूल हो गेलो, असली कलकत्ता के बनल पाचक हो, पत्थल भी पचा देतो । इहाँ आठे आना के टिकस में दू पुड़िया घरे ले जायला भी सेतिहे में मिलतो । एकरा रख लऽ, रातखनी खैला के बाद गरम पानी साथे खा लेबऽ तो कइसनो पेट के बेमारी ठीक कर देतो । मछरी के काटा भी पचा देतो ।"

******** Incomplete ********

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