Monday, September 25, 2006

32. सुक्खू आउ बेला

जहिना से सुक्खू के मील खदेरन के दू बजरनियाँ देलक हे तहिना से कै आदमी के गमछा इया धोती के खूँट पट्टा में बझ गेल हे । गते-गते गाँव में फैल गेल कि मील अब भूतहा हो गेल । खदेरन पहिले के मंजल देवसिया हलन । लगऽ हे उहे मील में कुछ कर देलन हे । नानी टोला के बूढ़ लोग के तो पूरा विसवास हो गेल हे । ई आग में घीव डाललक रग्घू । रग्घू तो घूर-घूरके प्रचार करे लगल कि भूतहा मील में कोई आटा पिसावे न जाय, न तोरी-तीसी कोई पेरावे; जेकर जान भाखल होय ओही जाय । रग्घू तो चाहऽ हल कि सुक्खू के मील कइसहूँ बइठ जाय । मील भी ओही चलावत, खेती भी ओही करत आउ दोकान भी ओही चलावत तऽ हमनी का ओहनी के हरे जोते ला जनम लेली हे । अब ई सब नऽ चलतइन । इहाँ नेकलाइट के राज हे - एक आदमी एक काम आउ जे कमाय ऊ खाय बाकि रग्घू के अल्हैत दल गाँव बिना कमैले खाय के दावा रखे लगल हल । जब नेकलाइट के राज हे तो गरीब के राज हे, मजूर के राज हे । अब खेती ओलन, मील ओलन के मजूरी करे परत आउ हमनी खेत मील के मालिक बनब । बड़ी दिना ओहनी मलिकार कैलन हे, अब हमनी करब । हमनी ढेर दिन धान रोपली अब ओहनी के रोपे परतइन आउ हमनी काटबइन । रग्घू ई छव-पाँच में परल सोचइत कसबा के नौकरी पर चलल जाइत हल ।

******** Incomplete ********

No comments: