जहिना से सुक्खू के मील खदेरन के दू बजरनियाँ देलक हे तहिना से कै आदमी के गमछा इया धोती के खूँट पट्टा में बझ गेल हे । गते-गते गाँव में फैल गेल कि मील अब भूतहा हो गेल । खदेरन पहिले के मंजल देवसिया हलन । लगऽ हे उहे मील में कुछ कर देलन हे । नानी टोला के बूढ़ लोग के तो पूरा विसवास हो गेल हे । ई आग में घीव डाललक रग्घू । रग्घू तो घूर-घूरके प्रचार करे लगल कि भूतहा मील में कोई आटा पिसावे न जाय, न तोरी-तीसी कोई पेरावे; जेकर जान भाखल होय ओही जाय । रग्घू तो चाहऽ हल कि सुक्खू के मील कइसहूँ बइठ जाय । मील भी ओही चलावत, खेती भी ओही करत आउ दोकान भी ओही चलावत तऽ हमनी का ओहनी के हरे जोते ला जनम लेली हे । अब ई सब नऽ चलतइन । इहाँ नेकलाइट के राज हे - एक आदमी एक काम आउ जे कमाय ऊ खाय बाकि रग्घू के अल्हैत दल गाँव बिना कमैले खाय के दावा रखे लगल हल । जब नेकलाइट के राज हे तो गरीब के राज हे, मजूर के राज हे । अब खेती ओलन, मील ओलन के मजूरी करे परत आउ हमनी खेत मील के मालिक बनब । बड़ी दिना ओहनी मलिकार कैलन हे, अब हमनी करब । हमनी ढेर दिन धान रोपली अब ओहनी के रोपे परतइन आउ हमनी काटबइन । रग्घू ई छव-पाँच में परल सोचइत कसबा के नौकरी पर चलल जाइत हल ।
******** Incomplete ********
Monday, September 25, 2006
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment