डिम-डिम, डिम-डिम, डिम-डिम, डिम-डिम
बढ़ जा, बढ़ जा, बढ़ जा, बढ़ जा
लगल लड़इया गढ़ महोबा में
अल्हा उदल चले उठि धाय ।
घप् घप् करके तेगा नाँचै
हन-हन करे तेज तरूआर ।।
रग्घू खड़ा होके ललकारलक - "जरा दिल खोलके पट्ठे ! अल्हा सुनके तो पत्थल में भी जान आ जा हे आउ तो हमनी के नेता जी आयल हथ । अइसन सुनावऽ कि ई जान जाथ कि नानी टोला अब मुरदा न हे, पक्का नेकलाइट बन गेल हे, बहादुर आउ काम करके खायओला ।"
******** Incomplete ********
Monday, September 25, 2006
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