Monday, September 25, 2006

37. सहर से गाँव में

"पढ़े फारसी बेचे तेल, देखो रे किस्मत के खेल ।" कहके रग्घू जमुना दने ताकलक आउ ई भरल बरसात में भी जुता मचमचावइत पक्की संडक धैले घरे चलल जाइत हल । जमुना बोलल - "केतनो हथिन तो मलिकारे घराना के न हथिन हो । अइसे काहे बोलऽ हें ?"
रग्घू - "अभी तो हमनी अपने में बतिआइत ही फिनो तो लोग मुँह पर कहतइन ।"

******** Incomplete ********

No comments: