दोसर लोग के सुगिया ऊपरे से तितली नियन लोकऽ हल जे कई तरह के फूल पर अपन सूढ़ गड़ाके ओकर गंध तो लेल चाहऽ हल बाकि फूल के गोदी पर में बइठल न चाहऽ हल । ऊ एतने उमिर में जान गेल हल कि फूल के सिकुड़ गेला पर तितली ओकरे में बन्हा जा हे फिन ओकरा उड़े के अजादी खतम हो जा हे । कोई-कोई फूल तो तितली के एतना जकड़ ले हथ कि ओकर दम घूटे लगऽ हे इया कभी ओकर मउअत भी आ जा हे । काहे से कि सब फूल तो कमल नियन न होय जे दिन पे खिल जाय आउ ओकरा पर बइठल तितली उड़ जाय । जादेतर फूल तो फूलाके सिकुड़लन तो सिकुड़ले रह गेलन । इहे गुने सुगिया कोई फूल से चिपकऽ न हल खाली सूंघीये के ओकरा पहचान जा हल । ओकर स्कूल के एगो सवँरकी दीदी बरोबर पढ़ावइत खनी कहऽ हलथिन कि मरद जात के बच्चा पर कभी विसवास आज के लइकी के न करे के चहीं न तो ओकरा जरे परऽ हे इया झंखे परऽ हे । ई बात सुगिया के हर बखत इयाद रहऽ हे ।
******** Incomplete ********
Monday, September 25, 2006
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