Monday, September 25, 2006

43. नानी के मूरति

सेवा आउ कर्म - बेला आउ सुसमा, प्रेम आउ निष्ठा - सुक्खू आउ नगीना, एगो चतुर्भुज । रग्घू, सुन्नर आउ अल्हैत चा - एगो त्रिभुज - दुर्जनता, संसय आउ बुद्धिहीन जोस । सूरूज महतो आउ रोझन - कर्मयोगी महात्मा । तब भिखना, बुधुआ, जमुना ? वर्तमान समाज में बहइत लोग जेकरा में मिसिर आउ बरमा परिवर्त्तन के मोताबिक बदलाव जे नानी के एक परम्परा खतम करके चतुर्भुज आउ त्रिभुज के परम्परा में जी रहलन हे । सुक्खू-नगीना के सबला परेम आउ काम में निष्ठा देखके ओहनी (बरमा-मिसिर) आज सुखी न दुखी हथ बलुक अचरज से भरल हथ ।

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