Monday, September 25, 2006

45. भाई-बहन के अमर संबंध

"बेला, आज दुपहर से साँझ हाली होइये न रहल हे । लगइत हे कि ब्रह्मा के दिन हो गेल हे । सुगिया दीदी सबेरही से खाय बनावे में लग गेल होयत । दिनऽ छते खाय तइयार कर देत बाकि आज दिन खतम होवे के नामे न लेइत हे ।"
"नया-नया बहिन भेलथुन हे । नया धोबिनया आवऽ हे, लुगरिये साबुन लगावऽ हे ।"
"नया-पुराना के बात न हे बेला, जेकरा एक तुरी बहिन के निहछल परेम के दरसन हो जा हे ओकर हिरदा के सब कलमस दूर हो जा हे । आज हमर मन में कोई तरह के दुराव-छिपाव, छल-कपट न हे । सुगिया हमर नया बहिन नऽ, बलुक जनम-जनम के बहिन हे । ऊ हमरा ला रोज खाय बनाके हमर आसा में रहऽ हे । हम ओकरा पहिले नऽ चिन्हली हल । आज चिन्ह लेली ।"
"वैसे नऽ हवऽ, साज-सुज आउ जात-जुत के परसतथुन आउ तू निहार-निहार के खइहऽ, हमर बनावल तो अब रुचवे न करतवऽ । पहिले कभी-कभार खा ले हलऽ । अब ओहू छोड़ देवऽ ।"

******** Incomplete ********

No comments: