Monday, September 25, 2006

46. नानी के गाँव में पुलिश

रग्घू सबसे पहले रोझन के जात से काट देलक हल । फिन जमुना के बाप के काटलक । ओहनी दूनो महतो टोली में रहके अपन जिनगी काट रहलन हल । फिर रग्घू के जात सुधार जमात रविदास संघ बनल हल बाकि ऊ ढेर दिन काम न कैलक तब ऊ अल्हैत के जमात बनौलक हल आउ भीतरे-भीतरे नेकलाइट नेता के बोला के भासन दिआवऽ हल । से नानी टोला के जादे लोग भीतरे-भीतरे नेकलाइट बन गेलन हल । बाकि रग्घू के अल्हैत बनाम नेकलाइट भी ढेर दिनाला न चलल । एक-एक करके ओकर जमात के लोग ओकरा पर अविसवास करे लगलन आउ एक रोज सुगिया-सुक्खू के घटना ओकरा प्रति लोभ के रहल-सहल परेम एकदमे तोड़ देलक । अब सुन्नर आउ जमुने नऽ बलुक अल्हैत चा भी रग्घू से नाखुस रहे लगलन । उनका लगल कि रघुये के चलते उनका सब दुर्गत सहे परल आउ बेटी के प्रति अविसवास पैदा हो गेल हे । ई तरी रग्घू सबके विसवास खोके एक रोज मन मारले कसबा दने चलल जाइत हल । बर के पेड़ तर जाके रुक गेल आउ बरहोर धरके खड़ा हो गेल । कतिकउर के घामा में ओकर तिरमिरायल देह बर के छहुरी में तनी ठंढा गेल तो ऊ सोंच में पर गेल । ओकर सोंच चिन्ता में बदले लगल बाकि भीतर के पुरुषार्थ सुतल साँप नियन फन छोड़के फुंफकार उठल - "एक-एक सार के दस-दस बरस जेहल के हवा न खिला देली तो हमर नाँव रग्घू नऽ । बेला सुक्खू हमर जानी दुसमन आउ नगीना-सुसमा राह के काँटा ? सबके कुचल न देली तऽ फिन कोई कहत । बाकि सूरुज महतो ?” – उनकर इयाद परते ओकर दिल एक तुरी सिहर गेल – “ऊ गाँव के गाँधी हथ बाकि हमरा गोड़ से बने परत । तब लोग जानत कि तरफदारी करे ओला के का भोगे परऽ हे । बरमा आउ रमधार मिसिर तो दाव के दुदेसिया हथ । आज ओने तो फिन ताकत आ गेला पर हमरा दने । आउ नानी टोला के हरिजन तो बिना पेंदी के लोटा हथ । ओहनी के लोघड़ाय में केतना देरी हे ? आउ हथ तो ओहनी हमर जाते न ? बखत पर हमरे साथ देतन । से अबरी भर कल्टर से मिलके सब पहिलका बात कह देवे के चाहीं । जदि कसबा के दरोगा ही इनक्वाइरी आ गेल तो बेला-सुक्खू के साथे नगीना-सुसमा भी हवा खाइत रहतन । तब अकेले सूरुज महतो अनसन करके परान दे देतन आउ फिन एके साथे सब किलकाँटा निकल जायत । तब महतो के नऽ, रग्घू के राज गाँव में हो जायत - पक्का नेकलाइट के राज, काम न धाम, बइठल खाम । तब सुगिया तो अपने हमरा ही आनके बइठ रहत, पौ बारह ।"

******** Incomplete ********

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