Monday, September 25, 2006

47. सुगिया काम सम्हारलक

सुगिया के सरगनई में गाँव के लइकी, जवनकी आउ बुढ़ियन के बढ़का जमात थाना पर पहुँचल तो थाना गाँव-जेवार के लोग से घेरा गेल । सब चुपचाप सांत थाना के चारु बगल बइठल हलन । थानादार दंगा बढ़े के डर से गिरफदार चारो लोग के जिला के जेल में रात ही भेज देलक हल । तपसेआ करे ओलन से स्वार्थी इन्द्र के जइसे डर लगऽ हे ओइसही थानादार भी सूरुज महतो अइसन संत से डरे काँप रहल हल आउ भीतरे-भीतरे उनको गिरफदार करे के जोजना बना रहल हल । सांति भंग करे के खिलाफ में उनका पकड़े के औडर दे रहल हल कि सुगिया थाना पर गरजइत पहुँच गेल ।
"खबरदार कि कोई सिपाही सूरुज चा दने बढ़े । एक-एक के कच्चे चिबा जबउ । ई घड़ी महातमा के बात लोग न सुने । ऊ समय खतम हो गेल जब अनसन, सांति आउ अहिंसा से अंगरेजी राज काँपे लगऽ हल । अब समय बदल गेल हे, तोहनी बात से नऽ, लात से सुनबें ।" फिनो कसके गरजल - "सूरुज महतो - जिंदाबाद" । सउँसे जमात से अकास चिर देवे ओला आवाज आयल - "जिंदाबाद-जिंदाबाद" । फिनो सुगिया जोर से गरजल - "रग्घू गद्दार हे " । पहिले से भी दोगुना अवाज उठल - "गद्दार हे, गद्दार हे " ।
- "थानादार ओकरा जल्दी पकड़ ।"
- "जल्दी पकड़, जल्दी पकड़ ।"

******** Incomplete ********

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