Monday, September 25, 2006

49. उपसंहार

एक बरस हाजती कैदी रहला के बाद कोट फैसला सुना देलक कि रग्घू के ताह जनम कठीन मेहनत के साथ कैद में रखल जाय । फैसला के बाद रग्घू जिला जेल से केन्द्रीय कारा में भेज देल गेल । गाँव के लोग के ई खबर मिलल तो सुक्खू आउ नगीना के बड़ा दुख भेल । अब तक ओहनी रग्घू बहु के संतोख देइत रहलन हल कि एक दिन उनका रहाई हो जायत काहे से कि गाँव के कोई लोग उनकर खिलाफ में गोवाही न देलक हल । थाना के गोवाही आउ परिस्थिति के सबूत पर उनका जिनगी भर ला जेहल दे देल गेल हल ।
सुक्खू आउ नगीना के सरगनई में एगो मीटिंग कैल गेल कि रग्घू के छोड़ावल जाय जेकरा ला हाईकोर्ट में अपील कैल जाय । जउन गाँव में एक आदमी भी दुखी हे ऊ गाँव के लोग के सुखी रहे के कोई अधिकार न हे - सूरुज चा के इहे कहलाम (सिद्धांत) हल । आउ, ई गाँव में तो दू परानी हरमेसे ला दुखिया हथ - रग्घू जेल में रहके आउ रग्घू बहु घरे रहके दुखिया हे । ओहनी के दुख सउँसे गाँव के दुख हे । से तय भेल कि रग्घू के छोड़ावे ला सउँसे गाँव दने से मोकदमा लड़ल जाय । इहे घड़ी सुगिया एगो आउ प्रस्ताव रखलक - "नानी के मूरति के बगले में सूरुज चा के भी मूरति स्थापित हो जाय के चाही आउ पत साल ओहनी के इयादगारी में इहाँ मेला लगे के चाही ।“ ई काम सुसमा पर सौपल गेल आउ सुक्खू पर कोर्ट के काम देल गेल । सुगिया नानी गाँव आउ नानी टोला के दरार भरे में दिन रात लगल हल ।
सुगिया के सोच दिन-रात इहे फिकिर में हल कि गाँव के मजूर के सम्बन्ध सब दिन ला कइसे बढ़िया हो जाय । सब लोग भाई-बहिन नियन मिल-जुल के रहथ आउ खेती में कमा खाथ । बचल समय में इहाँ छोट-छोट रोजगार चालू हो गेल हे । बेकार बइठल मरद-मेहरारु कुछ न कुछ करके उपार्जन कर ले हथ आउ मजे में खा पीअ हथ बाकि मजूर-किसान के सम्बन्ध हरमेसे ला सुधर जाय के चाही । से एक रोज इहे प्रस्ताव ऊ नगीना भिरु रखलक । नगीना बड़ा खुस भेल आउ बोलल हम तो एकरा ला ढेर दिन से चिंतित ही । खेत हमरे हे बाकि खेती में काम करे ओला के भी तो ओकरा पर अधिकार हे । हमर राय हो कि किसान-मजूर दूनो मिलके खेती करे आउ जे पैदा खेत में होय ऊ लागत मजूरी काटके दूनो में बाँट देल जाय ।
सुनके सुगिया तो अचकचा गेल । अइसन सुविधा तो सरकार भी न दिया सके । एकरा से बढ़के मजूर लोग के आउ का फैदा हो सकऽ हे । से सुगिया दउड़ल नानी टोला पर गेल आउ सब लोग के ई खुसखबरी सुना देलक । सुनते मातर सुन्नर, जमुना, गनौरी आउ ढेर मधेस एके तुरी बोललन - "का ठीके अइसन नगीना बाबू कहकथिन हे सुगिया बेटी ?"
"त का हम झूठ कहऽ हियो । आखिर ओहनी महतो घराना हथिन । नानीये के अंस मेंकर न हथिन । ओहनी के बात अटूट होबऽ हे । आज से इहाँ कोई मजूर-मालिक न रहल । सब के जोत-जमीन पर अधिकार हे । मिलजुल के जेतना जादे पैदा कैल जायत ओतने लाभ सब के मिलत ।"
सुनके सबके लगल कि सचमुच में नानी के गाँव सरग के एगो टुकड़ी हे आउ इहाँ के लोग सरग के दूत हथ । नानी जइसन धरती माय अइसने सरग के जनम दे हे ।
ओने सुक्खू रग्घू के छोड़ावे ला हाईकोर्ट में अपील कर देलन । एक रोज ऊ बेला के साथे रग्घू से मिले जेहल में गेलन । साथ में सुगिया आउ सुसमा भी हलन । रग्घू जेल के भीतरे से एहनी के देखलक तो ओकर पागलपन आउ भभक गेल । जहिना से ऊ सुनलक हे कि ओकरा ला सूरज महतो अनसन करके परान तेयाग देलन हे तहिना से एक-ब-एक ऊ पगला गेल हे । ऊ दिन-रात बकइत रहऽ हे कि हमरा सूरज चा भिरु ले चल आउ जे ओकर मन के खिलाफ बोल दे हे ओकरा पर बिगड़ के भूत हो जा हे । ओकर हाथ-गोड़ में हेरी-बेरी देल हल । एहनी चारो के देखते ऊ खूँखार बन गेल आउ गरजे लगल - "तोहनी जमदूत हें तो हमरा सूरुज चा भिरु जल्दी ले चल न तो एक-एक के कच्चे चिबा जबउ आउ तू गे सुगिया, इहाँ का बरहोर हउ कि ढुलुआ ढुलबे ? जो जो, बेला-सुक्खू के गठजोरी करा दे । ई बरमा के बेटी काहे ला आयल हे । जमींदार के खूँखार बेटी ? एगो सुक्खूये हमर इयार हे जे सुरुज चा से भेंट करा सकऽ हे । तोहनी सब जो, भाग । सुक्खू के अकेले हमरा भिर छोड़ दे ।"
सुक्खू जेहल के फाटक के जंजीर से हाथ बढ़ाके रग्घू के पीठ पोछइत बोलल - "रग्घू भाई, तू एतना घबरायल काहे हऽ ? सूरुज चा तोरा खोजइत हलथुन । कल लिया चलबवऽ ।"
"अयँ, सुरुज चा अभी जीते हथ ? हमरा एहनी सारन कह देलन कि मर गेलथुन । सब कहे ओलन के अपने नियन जाँता न पिसवा देली तो फिन हमर नाँव रग्घू नऽ ।"
"तू चुपचाप एकरा रख लऽ, सूरुज चा तोरा नस्ता करे ला फल-मिठाई भेजकथुन हे ।"
"तब तो सच्चो के न ऊ जीते हथ ? लावऽ, जल्दी दऽ, देखी तो कउची देलन हे ।"
रग्घू सुक्खू के हाथ से फल-मिठाई लेके अपन माथा में ठेकौलक आउ देखते देखते उहाँ खाड़ जेल के सब करमचारी में बाँट देलक आउ बोलल - "देख, हमर चचा केतना मानऽ हथ आउ तोहनी कह देलें कि ऊ मर गेलन हे । अब से कोई अइसन बात बोलवें तो जीभ कुबार लेबऊ ।" फिन सुगिया दने घूरके बोलल - "देख सुगिया, तोरा एगो भार देइत हिअउ - सुक्खू भाई के सादी बेला भाभी से करा दे । खाली गेठजोरी कर देवे से तोर काम खतम न हो जतउ ।"
अबरी सुसमा कहलक - "तू घबराइत काहे ला हऽ ? जल्दीये छूट जयबऽ तो चलके तू ही परोहताई कर दिहँऽ । सूरुज चा समधीआरो कर देथुन ।"
फिनो रग्घू खुस होके बोलल - "तब सूरुज चा सचमुच में जिन्दे हथ आउ हमरे एहनी पगला कहऽ हथ । पगला तो इहाँ के सब लोग हो गेलन हे । उलटे चोर कोतवाल के डाँटे । हम तो एकदमें ठीक न हीं सुक्खू भाई ? तोरा का राय हो ?"
"तू एकदमें ठीक हऽ । तोरा पागल के कहइते हे ? कुछ दिन में हमनी सब तोरा लेवे अववऽ । साथ ही चल के सूरुज चा से मिल लिहँऽ आउ नानीओ से भेंट कर लिहँऽ ।"
"नानीओ आ गेल हे ? तब तो अब हमर गाँव, नानी के गाँव - हा - हा - हा - हा । सूरुज चा मिल जयतन, नानी से भेंट हो जायत, उहाँ सुगिया भी रहत । सब लोग रहतन - हा-हा, हा-हा ।"
रग्घू के फिनो पागलपन के दौर उपट गेल । जेल करमचारी एहनी के जायला कहे लगलन आउ रग्घू के पकड़ के ओकर कोठरी में बंद कर देलन । ऊ उहऊँ से जोर-जोर से गरजे लगल जे एहनी के बाहर तक सुनाइत हल ।
"खोल, हमरा सूरुज चा भिर जाय दे । नानी के गाँव में जाय दे न तो केवाड़ी तोड़ देबऽ । सुक्खू भइया, दौड़िहँऽ हो, एहनी सूरुज चा से मिले न देइत हथ । दउड़ सुगिया, तू तो निठुर हे बाकि बेला, तू तो सबके सेवा करऽ हे । दउड़, हमरा सूरुज चा भिर जाय दे ।"
सुक्खू जेलर से कह रहल हल - "इनका जल्दी मनोरोग के डाक्टर से बढ़िया इलाज करावल जाय । एकरा में जे खरचा लगत ऊ सब नानी गाँव के लोग देतन । कोई तरह के कोताही न होय के चाहीं । जेलर के खर्चा के कुछ पइसा देके भारी मन से एहनी सब गाँव लौट अयलन ।
रग्घू के बढ़िया से बढ़िया ईलाज करे ला नानी गाँव से खरचा जाय लगल आउ जेहल से रेहाई ला हाईकोर्ट में मोकदमा के सुनवाई भी होबे लगल ।
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गाँव में सुगिया-सुसमा-बेला के त्रिमूर्ति । सुक्खू-नगीना के जोड़ी । मिसिर, बरमा, सूरुज आउ रोझन के चौखम्भा में एक खम्भा टूट गेल तो ऊ कोना के गिरे से बचावेला सुन्नर, गनौरी आउ जमुना दउड़ गेलन । चौखम्भा पर खड़ा घर तो न गिरल बाकि एक खम्भा में अनेक लोग के लगे से छत चरमराय के डर हल । से मिसिर-बरमा-रोझन के कर्म-द्रष्टा के रूप में साक्षी रखके चौखम्भा के एक कोना में सुक्खू , दोसर कोना में नगीना, तेसर कोना में जमुना आउ चौथा कोना में टेनिया के लगा देल गेल । रोझन मिसिर जी आउ बरमा जी के कान्हा पर अपन एकह गो हाथ रखके बोललन – “आवऽ गनौरी आउ तू हूँ सुन्नर बोलऽ 'सीरी राम, जय राम, जै-जै राम' आउ सुसमा के कर्म-पंथ के राही बन जा । नानी गाँव के सूरुज महातमा के यही संदेस - ‘आज से ई गाँव में न कोई बड़ न कोई छोट, न इहाँ कोई जात, न कोई मजूर न कोई किसान । सब अपन-अपन काम के राही हथ, अपन कर्म के पथिक ।‘ 'सीरी राम, जय राम, जै-जै राम' । आउ हमर जूता के मोटरी कपार पर उठा दे टेनी, कसबा चलिअउ, बेरा हो गेल हे ।।“

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