Monday, September 25, 2006

7. बरमा के दलान

बरमा जी अपन पलंगड़ी पऽ बइठल दलान में से गली में मुलुर-मुलुर ताकइत हलन । उनकर मसनद मेकर रूई फाटके बाहर हुलक रहल हल । मिसिर जी के एनही आवइत देखके ऊ निकलल रूई के हाथ के अंगुरी से भीतरे धसोर देलन तऽ भूर साफे लोके लगल । एने तोसक में भी कई गो भूर हो गेल हल आउ तनी-तनी रूआ निकलके एने-ओने छितरायल हल । ऊ आज कै साल से तोसक-तकेया बदलेला सोचइत हलन बाकि कभी मोका नऽ मिलइत हल । रमधार मिसिर जब दलान के ओटा पऽ चढ़लन तऽ बरमा जी लजा गेलन आउ तनी सान उठके फिनो पलंगड़ी पऽ बइठ गेलन । मिसिरो जी के एगो दोसर खटिया पऽ बइठे ला हाथ से इसारा कैलन ।

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