अदरा के पानी में बेंग निकलके गाँव के बधार में उछिले लगल हल से गुड़कइत-गुड़कइत जाके डुबकी मार देलक । अब ओकरा जमीन पऽ के पानी के जरुरते का हे ? मिसिर जी के पतरा के चार आढ़त पानी में तीन आढ़त तऽ समुंदरे में पर गेल, आधा आढ़त नदी-पहाड़ सोख लेलक तऽ जमीन पऽ आधा आढ़त से का होइत ? गिरहत सावने से आसिन तक अकास दने टकटकावइत रह गेलन । पानी के एको बून टपके के नाव न लेलक । काँस फुलाके बरखा अपन बुढ़ारी के खबर जना देलक । धोबनी चिरई पोछ हिलावइत गोबर के ढेरी भिजुन फुदके लगल । आसिन के धूरी में गरवइया लोटे लगल । भर भादो मेहरारुन के चउहट गावइत-गावइत घेघा में काँटा उखड़ गेल । देवीथान खीर खिअवते-खिअवते गिरहथ लोग परसान हो गेलन । देवकुंड के महादे जी के दूध में डूबावल गेल । बाकि बरखा जे रुसल से जिद्दी नायिका नियन नहिये मानल । गिरहथ हार-दाव देखके परहे नियन निसु हो गेलन आउ दुर्गापूजा के तइयारी में भारी मन से लग गेलन तइयो ओहनी के अंतिम असरा लगल हल कि हथिया टपक जाय तऽ बिहन-बाल आउ गवत पानी भर तो पोरा घास हो जायत ।
******** Incomplete ********
Monday, September 25, 2006
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